चलिए कुछ नया जानते हैं
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आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः||
क्या आपने कभी अपने आप को ध्यान से देखा है? अगर हां तो आपके हिसाब से नाक की उपयोगिता क्या है? अगर आपका उत्तर भी यही है कि नाक हमारी एक ज्ञानेंद्रिय है जिससे कि हम सांस लेते हैं और गंध का यानी खुशबू और बदबू की पहचान होती है तो आप एक महत्वपूर्ण और लाभदायक विज्ञान से अनभिज्ञ हैं। यदि आपके उत्तर में स्वरोदय विज्ञान भी है तो निश्चित ही आप प्रकृति के एक बेहद खूबसूरत उपहार से वाकिफ है। क्योंकि स्वरोदय विज्ञान या स्वर विज्ञान को जानने वाला कभी भी विपरीत परिस्थितियों में नहीं फंसता और यदि फंस भी जाए तो परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना कर ही बाहर निकलता है।स्वरोदय विज्ञान, चलिए आज इसे ही समझते हैं।।
दवायें बहुत तरह की होती है जैसे टेब्लेट, कैप्सुल, सिरप, क्रीम, ओइंट्मेंट वगैरह। पर जब बात आयुर्वेदिक दवाओं की आती है तो हम मे से ज्यादतर लोगों के सोच मे आते है चूरण, च्यवनप्राश, काढा, पुडिया और साथ मे ही इमाम्दस्ते या ओखली या खल्ल इन सब चीजों की तस्वीर भी सामने आ जाती है। सबको लगता है की शायद सारी या ज्यादातर दवायें आयुर्वेद मे इन्ही से बन जाती है; ये बात बहुत कम हद तक ही सही है। असल मे आयुर्वेद मे दवा बनाने मे बहुत तरह की चीजें, प्रक्रिया की जाती है। क्या आपनी कभी सोचा है की आयुर्वेद की फार्मेसी मे जहां सैंकडों, हज़ारों किलो दवाईयां बनती है वो कैसे बनती है? चलिए जानते है:

भारतीय उपमहाद्वीप मे समय के साथ जीवंत परंपराओं में संचरित ज्ञान प्रणालियों में, आयुर्वेद जो की स्वस्थ और दीर्घायु का विज्ञान है, सबसे प्रमुख स्थान रखता है। क्या आपने कभी सोचा है कि आयुर्वेद के सिद्धांतों की उत्पत्ति कैसे हुई और बाद में समय के साथ उत्तरोत्तर क्रम मे कैसे विकसित हुए? चलिए आज इन्ही उत्तरों को जानने समझने का प्रयास करते है।
डायबिटीज एक रोग नहीं है अपितु स्वस्थ सुंदर जीवन जीने के लिए स्व प्रबंधन व आत्म नियंत्रण की प्रेरणा है। डायबिटीज का होना तो प्रकृति का आमंत्रण है जो संयमित आहार-विहार अपनाने के लिए प्रेरित करता है। परंतु यदि व्यक्ति लापरवाह हो जाए यह सबसे भयानक रोग भी हो सकता है, तो इसे जानना समझना ज़रुरी है, चलिए आज इसे ही जांनते है।
डायबिटिज से जुडी बहुत सी शंकाएं और प्रश्न लोगों के मन मे होते है, इनका निवारण किया जाना बहुत ज़रुरी है। इन सवालों का हल मिलना, व्यक्ति का जीवन सुलभ हो सकता है। चलिए कुछ सामान्य शंकाओं और इनके समाधान के बारे मे जानने, समझने का प्रयास करते है:
हम अक्सर आयुर्वेदिक दवाओं, प्रोडक्ट्स के बारे मे लोगों के दावे सुनते है की हमारी दवा या हमारा प्रोडक्ट टेस्ट्ड है या लैब टेस्टड है; कुछ लोग दावा करते है की हमारा प्रोडक्ट बहुत ही ज्यादा अच्छा है, चाहे तो लैब मे टेस्ट करवा सकते है। पर क्या आपने कभी सोचा है की आयुर्वेद प्रोडक्टस/दवा की क्या क्या लैब टेस्टिंग होती है, किस टेस्टिंग से हमे क्या पता चलता है, ये टेस्टिंग कहाँ से होती है? लोगों के इन दावों की पोल को कैसे समझे? चलिए आज इसे ही जानते है।
दवायें बहुत तरह की होती है जैसे टेब्लेट, कैप्सुल, सिरप, क्रीम, ओइंट्मेंट वगैरह। पर जब बात आयुर्वेदिक दवाओं की आती है तो हम मे से ज्यादतर लोगों के सोच मे आते है चूरण, च्यवनप्राश, काढा, पुडिया और साथ मे ही इमाम्दस्ते या ओखली या खल्ल इन सब चीजों की तस्वीर भी सामने आ जाती है। सबको लगता है की शायद सारी या ज्यादातर दवायें आयुर्वेद मे इन्ही से बन जाती है; ये बात बहुत कम हद तक ही सही है। असल मे आयुर्वेद मे दवा बनाने मे बहुत तरह की चीजें, प्रक्रिया की जाती है। क्या आपनी कभी सोचा है की आयुर्वेद की फार्मेसी मे जहां सैंकडों, हज़ारों किलो दवाईयां बनती है वो कैसे बनती है? चलिए जानते है:
‘सूर्य नमस्कार’ का शाब्दिकक अर्थ सूर्य को अर्पण या नमस्कार करना है। यह योग आसन शरीर को सही आकार देने और मन को शांत व स्वस्थ रखने का उत्तम तरीका है। सूर्य नमस्कार योगासनों में सवर्श्रेष्ठ है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है।